ऊर्जाविहीन से ऊर्जापूर्ण

कृपा ही केवलम,कृपा ही केवलम।

कृपा ही केवलम, शरण्ये।

शरणागतहम, शरणागतहम।

शरणागतहम, शरण्ये।।

जय गुरु शरणम, जय गुरु शरणम।

जय गुरु शरणम, शरण्ये।।

जय गुरुदेव!!! 

अपने जीवन में गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए उपरोक्त पंक्तियां मेरी समझ में सर्वोत्तम हैं।

यूं तो मेरा पूरा जीवन ही गुरु कृपा से ओत प्रोत है या यूं कहें कि गुरु की उपस्तिथि मात्र से ही जीवन उत्सव सा हो गया है। इसमें कुछ घटनाएं ऐसी हैं जिन्हें याद कर आज भी वो सुखद यादें जाग उठती हैं। इन्ही सुखद यादों को संजोकर मैं अपने जीवन की एक छोटी सी गुरु स्टोरी साझा कर रहा हूं। इसे मैं अपने जीवन का स्वर्णिम काल भी कहता हूं। साल 2008, जब मैं अपने सबसे कठिन दौर से गुजर रहा था। नौकरी की तलाश में दर दर की ठोकरें खाता हुआ मैं बहोत परेशान रहा करता था। बैंगलोर की इतनी तेज जीवन शैली एवं स्वार्थ भरी मानसिकता से मैं पूर्ण रूप से ऊर्जाविहीन हो चुका था। जीवन में चारों तरफ नकारात्मकता का बसेरा था। ऐसे में जीवन में गुरु का पदार्पण अंधेरे में आशा की किरण की तरह ही था इसमें कोई संशय नहीं है। Yes+ एवं Dsn कोर्स ने मेरी पूरी जीवनशैली ही बदल दी।

जनवरी 2009 में बैंगलोर आश्रम में प्रथम एडवांस कोर्स करने का मौका मिला। इसमें मौन का बड़ा ही अद्वितीय अनुभव रहा। पहली बार ऐसा लगा जैसे चलते चलते मैं बादल सा हो गया हूं एवं हवा में तैर रहा हूं। मैं अपने को शरीर से अलग महसूस कर पा रहा था एवं बहुत ही आरामदायक एवं सुखद अवस्था को अनुभव कर पा रहा था जबकि भौतिक रूप से मेरे पास कोई सुख सुविधा का संसाधन नहीं था। यह प्रगाढ़  अनुभव की सुख का श्रोत मैं ही हूं मुझे आज भी अविस्मृत है। मैं अपने उस कठिन समय में अपने गुरु के द्वारा दिए गए अदभुत प्रेम को याद कर आज भी अभिभूत हो जाता हूं एवं कृतज्ञता के आंसू आंखों में भर जाते हैं। इसके बाद से ही जीवन को देखने का नजरिया ही बदल गया। इस नए जीवन के लिए इस गुरु पूर्णिमा पर गुरु चरणों को शत शत नमन।

जय गुरुदेव!!!

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